भारत में किसका रिश्ता बड़ा है - जाति, धर्म, वर्ग और क्षेत्र नहीं, जी नहीं..यहां रोटी और बेटी का रिश्ता सबसे बड़ा होता है। रोटी दिलाने के लिये सरकारी मनरेगा है और बेटी बचाने के लिये सरकारी कानून लेकिन दोनों बिकाऊ हैं। दोनों का सौदा होता है, कभी लड़के का बाप करता है और कभी साहूकार माई बाप।
देशी शादी में रोटी के साथ बेटी के रिश्ता साफ साफ नज़र आता हैं। बराती रोटी खाते हैं, चाहे उस भोज से ज्यादा की कीमत के तौहफो के नज़राने अदा करने पड़े, लड़की का बाप कन्यादान करता है, चाहे साथ में साइकिल से कार तक दहेज देना पड़ें। फिर भी बाराती और बाप खुश होते..आप इसे खुद-खुशी भी कह सकते हैं। आज भारत का ब्याह है, दुनिया की बारात दिल्ली आएगी, सड़कें सजी हैं, स्टेडियम सवरें हैं। खेल मंत्री कहते हैं की ठेठ देसी शादी की तर्ज पर कॉमनवेल्थ निपट जाएंगे। मुख्यमंत्री कहती हैं दिल्ली की दुल्हन तैयार है। प्रधानमंत्री कहते हैं कि देश के सभी युवाओं को ये शादी का खेल देखने स्टेडियम में आना चाहिये।
आखिर रोटी (पैसा) हम लोगों की लगी है और बेटी (इज्जत) भी हमारी ही है। रोटी और बेटी के नाते मीडिया को खेलों की मुखाल्फत छोड़ देनी चाहिए। चाहे रोटी के सरकारी चूहों के कुतरा हो, भष्टाचार के गहनों से भारत की बेटी सजी हो..लेकिन आप चुप रहिए – भारत का ब्याह है, बाराती सिर पर हैं, इज्जत की चटाई मत निकालो। सवाल छोटा सा कि क्या इस खेल के लिये दहेज जुटाना का जिम्मा सिर्फ जनता की जेब का है। क्या इस शादी से हम लोगों को रोटी मिलेगी और क्या चंद भ्रष्ट लोगों की कालिख पर चंदन का टीका भर लगाने से भारत मां भाल ऊंचा हो जाएगा।
ऐसा नहीं है इस हमाम में सभी नंगे है, कुछ कम भ्रष्ट हाकिमों में कंडोम भी पहने हैं, वरना 300 किमी मेट्रो, 30 फ्लाईओवर, सीपी की सूरत, रिंग-रोड़ की सीरत नहीं बदलती। लेकिन हम लोगों को इससे बेहतर की चाहत है। हम लोग 90 के राम राज्य की प्रजा नहीं रहे, कुछ पढ़ें-लिखे हैं, गूगल के चश्में से बसरत का बच्चा भी ये शादी देख सकता है, बिहार में लड़कियां साइकिल पर सवार हैं, यूपी के किसान चंद दानों के बदले जमीन नहीं देना चाहते और दिल्ली की बेटियां ब्याह में दहेज नहीं देना चाहती।
कभी किसी विदेशी-वेब में पढ़ा था कि भारत में 90 फीसदी महिलाओं के साथ रेप होता है, जिसे करने वाला कोई और नहीं उसका पति होता है, जिसे बिना रंजामदीं के सेक्स यानी बलात्कार को पुरुषार्थ की संज्ञा देते हैं। आज भी इस शादी के खेल में हम लोग ही सरकारी हाकिमों को दहेज दे रहे हैं और उसके बाद भ्रष्टाचार का बलात्कार भी हमी से होगा..और रोटी मिलेगी हाकिमो को।
गांधी के नज़रियें इस निकाह के देखें तो हमें असहयोग का रास्त चुनना चाहिये, क्योंकि चुनाव के वक्त तक तो हम इस रेप के घाव भूल गये होंगे। अगर राष्टमंडल खेलों को देखने कोई देशी-दर्शक पहुचें ही नहीं तो? सड़कों पर सवियर-अवज्ञया हो तो? अगर आवाम अफसरो को जता दें कि सरकार देश के सम्बल नहीं है, ज्महूरी जनता रोटी और बेटी से ऊपर उठ गई है। काली रात में दीपावली देखने के लिये हम अपना घर जला नहीं सकते..हम से हिन्दुस्तान है, इस ब्याह से भारत नहीं...!!!
देशी शादी में रोटी के साथ बेटी के रिश्ता साफ साफ नज़र आता हैं। बराती रोटी खाते हैं, चाहे उस भोज से ज्यादा की कीमत के तौहफो के नज़राने अदा करने पड़े, लड़की का बाप कन्यादान करता है, चाहे साथ में साइकिल से कार तक दहेज देना पड़ें। फिर भी बाराती और बाप खुश होते..आप इसे खुद-खुशी भी कह सकते हैं। आज भारत का ब्याह है, दुनिया की बारात दिल्ली आएगी, सड़कें सजी हैं, स्टेडियम सवरें हैं। खेल मंत्री कहते हैं की ठेठ देसी शादी की तर्ज पर कॉमनवेल्थ निपट जाएंगे। मुख्यमंत्री कहती हैं दिल्ली की दुल्हन तैयार है। प्रधानमंत्री कहते हैं कि देश के सभी युवाओं को ये शादी का खेल देखने स्टेडियम में आना चाहिये।
आखिर रोटी (पैसा) हम लोगों की लगी है और बेटी (इज्जत) भी हमारी ही है। रोटी और बेटी के नाते मीडिया को खेलों की मुखाल्फत छोड़ देनी चाहिए। चाहे रोटी के सरकारी चूहों के कुतरा हो, भष्टाचार के गहनों से भारत की बेटी सजी हो..लेकिन आप चुप रहिए – भारत का ब्याह है, बाराती सिर पर हैं, इज्जत की चटाई मत निकालो। सवाल छोटा सा कि क्या इस खेल के लिये दहेज जुटाना का जिम्मा सिर्फ जनता की जेब का है। क्या इस शादी से हम लोगों को रोटी मिलेगी और क्या चंद भ्रष्ट लोगों की कालिख पर चंदन का टीका भर लगाने से भारत मां भाल ऊंचा हो जाएगा।
ऐसा नहीं है इस हमाम में सभी नंगे है, कुछ कम भ्रष्ट हाकिमों में कंडोम भी पहने हैं, वरना 300 किमी मेट्रो, 30 फ्लाईओवर, सीपी की सूरत, रिंग-रोड़ की सीरत नहीं बदलती। लेकिन हम लोगों को इससे बेहतर की चाहत है। हम लोग 90 के राम राज्य की प्रजा नहीं रहे, कुछ पढ़ें-लिखे हैं, गूगल के चश्में से बसरत का बच्चा भी ये शादी देख सकता है, बिहार में लड़कियां साइकिल पर सवार हैं, यूपी के किसान चंद दानों के बदले जमीन नहीं देना चाहते और दिल्ली की बेटियां ब्याह में दहेज नहीं देना चाहती।
कभी किसी विदेशी-वेब में पढ़ा था कि भारत में 90 फीसदी महिलाओं के साथ रेप होता है, जिसे करने वाला कोई और नहीं उसका पति होता है, जिसे बिना रंजामदीं के सेक्स यानी बलात्कार को पुरुषार्थ की संज्ञा देते हैं। आज भी इस शादी के खेल में हम लोग ही सरकारी हाकिमों को दहेज दे रहे हैं और उसके बाद भ्रष्टाचार का बलात्कार भी हमी से होगा..और रोटी मिलेगी हाकिमो को।
गांधी के नज़रियें इस निकाह के देखें तो हमें असहयोग का रास्त चुनना चाहिये, क्योंकि चुनाव के वक्त तक तो हम इस रेप के घाव भूल गये होंगे। अगर राष्टमंडल खेलों को देखने कोई देशी-दर्शक पहुचें ही नहीं तो? सड़कों पर सवियर-अवज्ञया हो तो? अगर आवाम अफसरो को जता दें कि सरकार देश के सम्बल नहीं है, ज्महूरी जनता रोटी और बेटी से ऊपर उठ गई है। काली रात में दीपावली देखने के लिये हम अपना घर जला नहीं सकते..हम से हिन्दुस्तान है, इस ब्याह से भारत नहीं...!!!
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