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शनिवार, अप्रैल 9

लोकपाल की जीत के बाद, अब RTR की जंग...!!


जन-लोकपाल बिल पर जीत हासिल करने के बाद अन्ना हज़ारे RTR यानी राइट टू रिकॉल के लिये आंदोलन करेगें। अन्ना हज़ारे यह घोषणा 100 घंटो तक चले अमरण अनशन के बात आई हैं। आखिर इस बार सरकार और संसार ने भी देख लिया कि फेसबुकिंग करने वाले युवा जंतर-मंतर पर फेस-टू-फेस भी हो सकते है। ट्विट करने वाले अभिनेता, अन्ना के मंच पर जनादेश का मंचन भी कर सकते हैं, सनसनी और भूत बेचने वाले खबरियां चैनल हज़ारे का हथोड़ा बनकर सरकार की चूल्हे तक हिला सकते हैं।


अन्ना हज़ारे वहीं गाँधीवादी हैं, जिन्होनें 2003 में 12 दिन की भूख हड़ताल करके RTI यानी सूचना के अधिकार को लागू करवाया था और आज 42 सालों से ठंडे बस्ते में पड़े लोकपाल बिल पर मनमोहन सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर कर डाला। अब इस गाँधीवादी महानायक ने आरटीआर यानी वापस बुलाने के अधिकार का आवाहन किया हैं। इस अधिकार का उदाहरण पहले पहल ग्रीस के नगर राज्यों में मिलता था। जहां एथेंस और स्पाटा के नगरिक अपने चुने हुऐ नेताओं के विरोध में चुनाव ने पहले वोट देकर उन्हे सत्ता छोड़ने पर कानूनी रुप से बाध्य कर सकते थे।

वर्तमान में इसका चलन कुछ हद तक अमेरिका के छोटे राज्यों में है लेकिन आमतौर पर इसे बड़े मुल्कों और लोकतंत्र में लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि यह कानून प्राचीन यूनानी नगर-राज्यों में तो चल सकता था लेकिन आज के राष्ट्रीय राज्यों और खासतौर पर भारत जैसे मुल्कों में इसकी कोई जगह नहीं, जहां की आबादी 120 करोड़ से भी ज्यादा हैं। हांलाकि आज भी भारत की पंचायतों में पंच को ग्रामसभा बहुमत के कार्यकाल खत्म होने से पहले भी रुक्सत कर सकती है और संसद में हर 6 महीने के बाद, 50 सासंदो के ज्ञापन से सरकार को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा सकता है, लेकिन मुख्य रुप से वापस बुलाने के अधिकार से इस देश के नागरिक अज्ञान और वंचित हैं।

अन्ना हज़ारे की कोशिश है कि अव्वल तो सूचना के अधिकार से भ्रष्ट नेताओं और अफसरों के खिलाफ सबूत जुटायें जाए, उसके बाद लोकपाल कानून से उन्हे सज़ा दिलाई जाऐ और फिर भी उनका सत्ता का नशा नहीं टूटे तो आरटीआर से उन्हे वापस बुलाने का अधिकार भी जनता के पास होना चाहिये। हालांकि इसके लिये अभी दूर तक चलना होगा पर जंतर मंतर से अन्ना से जता दिया कि वो जनता के लिये कितनी ही दूर तक चलने की ताकत रखते हैं।


सरकार का कहना है कि वैसे भी चुनाव में जो खर्च आता है उसे झेलना भारत जैसे विकासशील मुल्क के लिए बड़ी बात है और अगर आरटीआर को कानूनी दर्जा दिया गया तो देश का दिवालिया निकल जाएगा। चुनावी खर्च देश को कंगाल कर देगा और विकास का रास्त रुक जाएगा। इस तर्क को काटने के लिये दो तीर है पहला तकनीक और दूसरा जनादेश ..। आज दिल्ली की आबादी से ज्यादा इस शहर में सेल फोन है, हर दूसरा नागरिक ई-मेल करना जानता है। देश-भर में 70 करोड़ लोग मोबाईल धारक हैं और 70 फीसदी पढ़े-लिखे भी..। तो क्या मेल या एसएमएस से वोटिंग मुमकिन नहीं ? क्यों लोकतंत्र का अर्थ बस एक बार वोट देकर पांच साल की सत्ता सौंपना भर है ? क्या यूनानी नगर-राज्यों और भारतीय पंचायतीराज के मूल्यों से गांधी के स्वराज को पाया नहीं जा सकता ?


अगर फिर भी सरकार का जवाब नेगटिव रहता है तो याद रहे लीबिया, मिस्र और यमन में चुनाव नहीं हुऐ है पर सरकारें बदल गई हैं, सत्ता छिन गई है और तख़्त पलट दिए गये है। कोई पांच साल का इंतज़ार नहीं और किसी पार्टी का घोषणा-पत्र नहीं..आवाम उठी और तक़त उलट गये। आज 10 जनपंथ और 7 आरसीआर से भी अन्ना के अनशन की शक्ति देख ली है और अगर 100 घंटो का यह आंदोलन नहीं थमता तो जंतर-मंतर, तहरीक चौक बन सकता था और 100 कदमों की दूरी पर था संसद..। बच्चे के रोये बिना को उसकी मां दूध तक नहीं पिलाती तो अधिकार से लिये लड़ाई तो करनी ही होगी..नक्सलियों की तरह जंगलो में छुपकर नहीं..देश की राजधानी में उसकी सरकार के सामने क्योकि यह गंदातंत्र नही हमारी लोकशाही है और अभी लड़ाई जारी हैं..!!

शुक्रवार, अप्रैल 8

अन्ना का अनशन, आंदोलन और हम लोग


जब भी कभी किसी पांच सितारा होटल के गलियारे में, एसी चैम्बर में बैठे अभिजात यानी ऐलीट लोगों की भ्रष्टाचार की बात होती है तो एक वाक़या हमेशा सुनाया जाता है। एक इंडियन सांसद अमेरिका गया, वहां की उच्च सदन सीनेट के सांसद से मिलने...अमेरिकी सांसद का घर बहुत अच्छा था..महल जैसा..रंगीन पर्दों के पीछे से उन्होनें भारतीय सांसद को पास का पुल दिखाया और बोले " आपको ये पुल नज़र आ रहा है..50 पर्सेंट"..यानी पुल के लिये कुल बजट का 50 फीसदी पुल के निर्माण में लगा और आधा उस अमेरिकी सांसद के घर को महल बनाने में..। कुछ महीनों के बाद वो अमेरिकी सांसद दिल्ली पहुचे, अपने इंडियन सांसद दोस्त के घर गये..फिर हमारे भारतीय सांसद ने उन्हें अपने सरकारी आवास से रोड पर लगा ट्रैफिक-जाम दिखाया और बोले " आपको वो फ्लाई ओवर दिख रहा है ?" जवाब मिला नहीं..क्योंकि वहां ट्रैफिक जाम तो था पर कोई फ्लाई ओवर नहीं..। हमारे सांसद साहब बोले.."100 पर्सेंट" और उनके हाथ में स्विसबैंक अकाउंट का आईडी था। यानी भारत में भ्रष्टाचार नहीं होता..100 फीसदी लूट होती है..फ्लाईलों में फंसाना बनता है और अफ़ग़ानों में काले धन की ख़बरे...।


आज इस लूट को रोकने के लिये अन्ना अनशन पर है... ख़बरियां चैनल कहते हैं कि यह अनशन नहीं आंदोलन है। फेसबुक पर मुहिम चलती है कि इस दफा का भारत रत्न सचिन को मिले या अन्ना को, ट्यूटर पर पोस्ट आता है कि अन्ना के आगे आईपीएल फेल हो गया, जीमेल-बज़ पर बुद्धिजीवी लोग अन्ना के अनशन स्थल को यानी जंतर-मंतर को भारत के तारीख़ चौक की संज्ञा देते है, एसएमएस और मेल आता है कि जब मनमोहन बिना चुनाव लड़े पीएम बन सकते है तो अन्ना बिना संसद पहुचे जन-लोकपाल बिल पास क्यो नहीं करवा सकते..। जंतर मंतर हज़ारों की भीड़ तो है, पर भीड़ से भीड़तंत्र बनता है लोकशाही नहीं..। कुछ जवा लोग इंडिया गेट की जगह जंतर-मतंर में तफ़री करते नज़र आते है..कुछ न्यूज़ चैनलों में दिखने की हज़रत लिये, कुछ पेरेंटस् अपने बच्चों की पीकनिक के बहाने यह दिखाने पहुंचते है कि एक सदी पहले गांधी की आंधी कुछ ऐसे ही चलती होगी..। क्या इससे 100फीसदी की लूट रुक पाएगी ?

अगर यहीं सच्ची तस्वीर है तो तथाकथित आज़ादी की दूसरी जंग की हालत भी पहले जैसी ही रहेगी..। 1947 की कीमत हमे आज याद नहीं क्योंकि आज़ादी के पेड़ के फल खाने के लिये..बहुत से राजा, कलमाडी, नीरा, हसन और रानी तक तैयार हैं। 1965 के नक्सवाड़ी के नेता चारु मजरुमदार , कानू सांयाल की सर्वहारा सोच की खेती कृष्णजी और गणपती जैसे नक्सली नेता आदिवासियों और पुलिस का खून मिलाकर खा रहे है। 1977 के लोकतंत्र की लड़ाई के सिपाई जेपी और लौहिया के लोग मुलायम, लालू, नीतिश, जॉर्ज ने सत्ता और चारा दोनो की मालाई खाई हैं..। 1992 और 2006 के आरक्षण और मंडल-मंडल की लड़ाई लड़ने वाले आज खुद रेल पर रेला निकालकर आरक्षण की भीख चाहते हैं। तो क्या अन्ना के अनशन और आन्दोलन की भीड़ से भ्रष्टाचार का भूत क्या भाग पाएगा ? और केजरीवाल, अग्नीवेश,रामदेव, किरनबेदी भविष्य के लालू-शरद और मुलायम यादव नहीं बनेगें ?

अभी दस साल भी नहीं बीते कि जब अन्ना हज़ारे ने 12 दिन सत्याग्रह करके सूचना का अधिकार पाया था। आज आरटीआई हथियार कम और दुकान ज्यादा बन गया हैं । इस बात कि क्या गारंटी है कि अगर मनमोहन सरकार लोकपाल बिल की मसौदा कमेटी में अन्ना का अध्यक्ष बना देगें, अगर नोटिफिकेश भी आ जाएगा तो भी इस बिल की हालत तलेंगाना राज्य की जैसी नहीं होगी, जिसके लिये आमरण अनशन के डर से एक कमेटी बनी, फिर उस कमेटी पर विचार करने के लिये एक ओर कमेटी लेकिन नतीज़ा सफ़र यानी शून्य, सियासी गोला और हीरो का ज़ीरो...।


हांलाकि हज़ारे के पास दो ऐसी बाते हो जो इस ज़ीरो के आगे लगकर सियासी रहनुओं के 19 पर 20 साबित हो सकती हैं। पहली भय और भूख और भ्रष्टाचार के नारो से उलट इस लूट को रोकने के लिये रोड़-मेप यानी जन-लोकपाल बिल का मसौदा है। और दूसरे हम लोग..। क्योंकि अन्ना का अनशन सीलिगं या एक रेंक-एक पेंशन के सामुहिक हितों के लिये नहीं है, उसका अनशन जेसिका लाल या प्रियदर्शीनी मट्टू जैसे वक्तिगत न्याय के लिये भी नहीं है। उसका अनशन हमारे लिये हैं। ताकि हमे सरकारी अस्पतालों में कफन तक के लिये रिश्वत नही देनी पड़े, ताकि काला-धन के कुबेर तिहाड़ जेल में नज़र आये, थानो में केस दर्ज हो, स्कूलों में मिले दाख़िला और भारत को सोने की चड़ियां वापस मिले..।


जंतर मंतर पर भीड़ है या जागरुक जनता इस पर सवाल उठाये जा सकते है लेकिन वो पैसे देकर भाड़े पर जुटाई नहीं गई, यह भीड़ भी सरकार के लिये वोट बैंक है..यह जताने के लिये काफी है कि हम नेता की रियाआ नहीं जो जाति और दारु के नाम पर बिकती रहे..हम भारत के लोग जनता है, प्रजा नहीं। चड़ियां के घोसले से फ्लेटो में रहकर, बुद्धू डिब्बे के कम्पियुटर कर काम करके और गूगल के चश्मे से संसार को देखकर भी..आज़ाद आवाम है। 10 जनपथ पर बैचेनी है, 7 आरसीआर में खलबली है, और मुम्बई के फिल्म वाले जहन में रंग दे बंससी या युवा जैसी एक और मूवी बनाने की मंशा..। 2जी में फसे मीडिया के गिग्ज दलाल भी जंतर-मंतर से लाइव करने पर मजबूर है, इस बिल से भीगी बिल्ली बनी बीजेपी भी समर्थन कर रही हैं और राजमाता सोनिया जी अन्ना के अपील..।


बड़ी बात यह नहीं है कि अन्ना का अनशन कामयाब होगा या नहीं, बड़ी बात यह भी नहीं की जंतर-मंतर की भीड़ जनमत का आंदोलन खड़ा कर पाएगी या नहीं..। बड़ी बात उस सांसद वाले वाक्य को फिर से पढ़ने की है..। कि उन सियासी लूटेरो के पास स्विजबैक अकाउंट है, गाड़ी और बगंला, जैवर और जांगीर भी..तो जनादेश का डर भी इन्हे ही लगना चाहिये..। अगर जनमत की आग फैलेगी को उस 80 करोड़ नागरिकों का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा जो दिन भर मेहनत से 20 रुपये ही कमाने पर इन लालफीताशाही नवाबों के महल जलकल ख़ाक ज़रूर हो जाएगें..। डर गरीबी की ज़ज़ीरो में फसे आवाम के नहीं, हमारे हुकमराने के दिन में है..लूट के बंद हो जाने के डर का नाम ही है जन-लोकपाल बिल..। इसलिये ज़रूरी है कि इस बार नवरात्रो का व्रत मिट्टी की मूर्ति के वास्त नहीं माटी के मानव के वास्ते जंतर-मंतर पर जाकर रखा जाए क्योंकि आज ये देश दवि या भगवान हवाले नहीं, हज़ारे और उनका साथ देने वाले हजारों लोगो के हवाले है..आखिर नेताओं के इस डर के आगे लोकपाल बिल है..।