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शुक्रवार, अक्टूबर 8

भारत के बदलते भगवान : भोलेबाबा से सांईबाबा

मेरे किसी दोस्त ने फेसबुक पर एक सवाल पूछा था.. “शहरों में भोले बाबा की जगह, सांईबाबा क्यों ले रहे हैं ?“ सवाल बेवजह का लग सकता है, लेकिन बड़ा जरुर हैं। क्या भारत अपने भगवान बदल रहा हैं ? देखियें मै किसी बाबा से निजी सरोकार नहीं रखता। आपकी आस्था का सम्मान है पर उसमें विश्वास नहीं..। फिर भी इस सवाल पर सोचनें लगा – भला क्यों शहरों के बाबा शिव से सांई हो गये..जबकि आज से 20-30 बरस पहले सांई भग्तों की संख्या इतनी नहीं थी।

भोलेभंडारी नाग लपेटे है, राख रमायें है, धूणी चढ़ाये है तो क्या शहरी सभ्यता इसे स्विकार नहीं कर पा रहीं, लेकिन अगर ऐसा हो तो कृष्णा से सुन्दर भगवान भला कौन हो सकते है ?...और सांई भी तो कोई पॉप-स्टार नहीं रहें। फिर सोचा शिव को पंसद करना शायद ज्यादा जटिल रहा होगा..सोमवार का व्रत रखना, बेल-पत्ते से दुध तक की आहुती देना..कॉसमों-कल्चर शहरियों से लिये सरल रही रहता..।

सांई ज्यादा सहज भगवान है..एक साजसेवक की तरह उसका दर्शन है जो आम आदमी के दर्पण को प्यारा लगता है। उन्हें प्रेम से कुछ भी देदें तो वो आपकी मनोकामना पुरी कर देते है..। उसके चमत्कार भी कुछ हद तक अंग्रेजी फिल्मी की तर्ज पर लॉजिकल होते है..हिन्दी फिल्मी-फसाने जैसे नहीं...जिसका कोई सर पैर ना हो..। शिव गंगा को जटाओं में धारण कर सकते है, सागर का विष्पान भी..लेकिन आम आदमी आज इससे सरोकार कम रखता हैं। वो तो अपने रुपयों से कुछ पैसें दान कर समाजसेवा का संवाग रच लेता है और सांई का भग्त कहलाता हैं।

एक दुसरी कारण भी हो सकता है..श्रि.डीं के सांई-संस्था बहुत ओग्नाइंज़ड हैं। समाजसेवा के काम करती है, सांई प्रचार भी और भग्तों से दर्शन तक का टेक्स लिया जाता हैं। ये सांई-धर्म प्रचार की रीत हैं..ठीक वैसे ही जैसे ओग्नाइंज़ड तकनीक से अमेरीका आगे भड़ा..। कभी शैवमत भी इसी तर्ज पर तरक्की पर था। जब शैव अखाड़ें, वैष्णों अखाड़ों से भी आगे थे। चारों शकंराचार्य शिव-उपासक थें और भारत शिवमय हुआ करता था।

इतिहास देखे तो महोम्द-गज़नवी की सोमनाथ-मंदिर पर चड़ाई याद आती है, कैसे शैव-अखाड़ों ने महोम्द की सैना तो दो महिनों तक सोमनाथ को फतह नहीं करने दिया। कैसे किसी सैनिक-लश्कर से चंद हजार भग्तो से लौहा लिया। वो भोलेबाबा के स्वर्ण युग था। मेंने खुद हरिद्वार के कुंभ में देखा था, आज के लोक नागा और शैव अखाड़ो से खौफ़ खाते है। उन्हें देख ऐसे नांक-मुह सिकोड़ लेते है, मानों दिल्ली के किसी वयस्त चौराहे पर भीख मांगते किन्नर को देख लिया हो। उसके लिये बनी श्रृद्धा खो चुकी है और भूत जैसी दिखती काया से लोग खौफ ही खाते हैं।

हांलाकि आज भी कवड़ियों से ट्रेफिक जाम होता है, लोग अपना कर्म करने के लिये दफ्तर लेट पहुचतें हैं..लेकिन अब युवाओं में कवड़ियों के लिये वो भाव नहीं बचा..कैलाषखेर के गानों में मस्ती करनेवालो को, जबरन लीफ्ट लेने वालो को..भला कोई भग्त की संज्ञा दें भी तो कैसे ?

वहीं सांई के नाम पर समाजसेवा कम से कम शहरों में तो जोरों पर हैं। जहां सेवा होगी वहीं शिव होगें और सांई भी...। जहां भगवान और भग्त में दूरियां होगी, पूजा-विधि किसी आफत सी लगेगी। तो उसका हाल वहीं होगा, जो कभी जैन धर्म का हुआ था..बोद्ध ज्यादा सरल धम्म था..उसे भारत से जापान ने चीन, थाईलेड, लंका होते हुऐ धारण किया और जैन दिग्मंबर बनना सबके बुते की बात नहीं थी।

नानी की कहानी याद है - आपको..मीठा खाकर रात में मत निकलना, भूत चिपट जाएगा । आज भी कुछ ऐसा ही होता है। कभी SMS और कभी E-MAIL के नाम पर कहा जाता है कि अगर ये मैसेज आगे नहीं भेजा तो बुरा होगा और भेजा तो आपका प्यार – आपके पास..। नानी की कहानी ..से intel-core-2010 तक बहुत कुछ बदल गया है लेकिन इंसानी फितरत नहीं बदली।

धर्म को मैं मार्कस की तरह अफीम तो नहीं कह सकता लेकिन जब तक धर्म जोड़ने की बात करता हैं, समाज से सरोकार रखता है मै उसके साथ हु..लेकिन 47 का देश, 84 की दिल्ली, 92 के यूपी और 2003 के गुजरात के साथ नहीं..। मेरा वास्ता उस कन्जको से हो सकता है जिससे कुछ गरीब लड़कियों को भर-पेट भोजन मिल जाऐं लेकिन उस नवरात्रों के व्रत से नहीं, जिसके चलते फल-सब्जी और दूध के दाम आसमान पर हो..क्योकि मेरे मुल्क में आज भी आधा-भारत अधुरा पेट सोता है। बात भले ही भोलेबाबा और सांईबाबा से शुरु हुई हो लेकिन इस मुल्क में बातों और बाबा-बापुओं की कोई कमी नहीं..। कुछ जेल में है और कुछ ई-मेल में.. मुझें याद है, बच्चपन में एक ही सरकारी-चैनल होता था दूरदर्शन और एक ही बापू – मोहनदास कर्मचंद गांधी..आज चैनल और बापू बहुत हैं....क्योकि भारत बदल रहा है...!!

16 टिप्‍पणियां:

ajay singh ने कहा…

lipi ki mantara ki galtiyon par dhayan dijiye
baki dharm ki sangya aajke vartman samay mein kafi badal chuki hai
aaj ka dharm vo hai jo apni bhalai ke liye ho
ati uttam

shuklapurnendu ने कहा…

sai baba ki branding achhi hai.isliye unki dukan bhi achhi chal rahi hai.

Unknown ने कहा…

agar bhagwan badal rahe hai to kya,astha to kahi jyada bhad rahi hai.vighan me parivartan parkarti ka niyam hai....

बेनामी ने कहा…

rahul ye baat bilkul satya hai ki bhagwan badal rahe hai but ye bhagwan nahi logo ki aastha badalti rahti hai janha dekha tawa parat wanha gaye saari rat.ye kuch bhed chal jaisa bhi ho raha hai.janha jyada lambi line dekhi usi line me lag gaye ki jarur ye kuch jyada chamatkari hoga.but ye to bhakti par nirbhar karta hai.

Unknown ने कहा…

पल पल... हर पल...
हर चीज बदल रही है...
फिर शिव बदले तो क्या...
और साईं बदले तो क्या...

बदलाव है दस्तूर दुनिया का...
जो ना बदले वो दुनिया ही क्या...
हर सुबह शाम में बदल रही है...
पल पल... हर पल..., हर चीज बदल रही है...

शिव बदला तो क्या और साईं बदला तो क्या...
बोझ बदलता नहीं कंधे बदलने से...
बदलाव लाजमी है शिक्षा में...
शिक्षा की ' चूल ' हिल चुकी है...
पल पल... हर पल..., हर चीज बदल रही है...

आओ जन जन को जागरण के लिए प्रेरित करें...

सम्पूर्ण आनंद ०८.१०.२०१० @ २३:५६.

बेनामी ने कहा…

सच्ची बात आपने कही है राहुल जी! धर्म के नाम पर व्यापार चल रहा है... लोग भगवान का चयन भी धन के आधार पर करने लगे हैं... उन्हें जिस भगवान से धन आता दिख रहा है उधर मुंह कर रहे हैं...

rajesh jha ने कहा…

सच्ची बात आपने कही है राहुल जी! धर्म के नाम पर व्यापार चल रहा है... लोग भगवान का चयन भी धन के आधार पर करने लगे हैं... उन्हें जिस भगवान से धन आता दिख रहा है उधर मुंह कर रहे हैं...

Unknown ने कहा…

Rahul ji aap logo ki aastha par sawal nai utha sakte . logo ko jaisa thik lagta hai waisa karte hai . aapki kuch baato se main jarur sahmat hu.

Prity ने कहा…

नानी की कहानी ..से intel-core-2010 तक बहुत कुछ बदल गया है लेकिन इंसानी फितरत नहीं बदली।......वाह क्या बात कही है micro description of human behavior ........

Arun Khare ने कहा…

Perfectly right. I do agree with you

Darshan Lal Baweja ने कहा…

धर्म के नाम पर व्यापार चल रहा है...
आओं देखें आज क्यों और कैसे ?विज्ञान मे क्या हलचल है
आओं देखें आज विज्ञान गतिविधियाँ मे क्या हलचल है

Prity ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
surbhi agarwal ने कहा…

rahul-aajkal handy and easy going puja vale bhagwaan ka trend hai..samay ke saath aastha tatha dharam ka swaroop bhi parivartit hota dikhayi pad raha hai..

MI HIJO SE DROGA, TE PLATICO MI EXPERIENCIA ने कहा…

Al tener conocimiento que tengo un amigo en los medios de comunicación, y reconocer que es un trabajo arduo y lleno de dificultades y como consecuencia de dicho trabajo, podrá alcansar el exito profesional, por tanto, es inevitable que tal profesionista concentre su mayor esfuerzo en aportar sus conocimientos para dejar una impresión profunda y duradera en su campo. Por ello, es para mí un verdadero placer, utilizar este espacio para expresarle mi admiración y respeto a RAHUL DABAS

Parthvi ने कहा…

कितना बदल गया हम नहीं बदले पक्के सनातनी ...

Unknown ने कहा…

देखिये हम ३६ कोटि देवताओ को नहीं पूज सकते | हर भगवन के कई रूप कृष्ण, कन्हिया, मुरलीवाला, वामन अवतार, ये वो और ना जाने क्या क्या | हर धर्म मैं मैं सिखाया जाता है के भगवन एक है फिर हिन्दू धर्म मैं इतने भगवन ना जाने किसने और क्यों बना दिए | रही साईं बाबा की बात तो वे संत है जिन्होंने हमें एक भगवन का रास्ता दिखाया " सब का मालिक एक " वह हिन्दू के साथ साथ सभी धर्म के लोग जाते है | कोई खास सामग्री नहीं " दो हात और तीसरा सिर" जोड़ दो बस काम हो गया | खुद से पुचो साल मैं इतने तेवहार कर के हम ताग नहीं आ गए | मैं दुसरे धर्म की बात नहीं करूँगा पर हा ! धर्म के नाम पर हमारे जिंदगी के २ से ४ साल इन रीती रिवाज और धर्म निभाने मैं चले जाते है | प्रार्थना को लिए कोई जगह की जरुरत नहीं न ही समय की बार अखे बंद करो और पभु से बोलो धन्यवाद् आज का दिन मेरा बढ़िया गुजरा और हो गया बस |