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बुधवार, जून 2

मुहब्बत का मुल्क या दौलत का देश

है प्रीत जहां की रीत सदा, हर 15 अगस्त और 26 जनवरी के आस-पास ये गाना फिज़ा में घुलनें लगता है। एक पुराना गाना और है जो ठीक मनोज कुमार की पूर्व-पश्चिम की तरह देर रात कभी-कभार एफएम में बज जाता है.. “मेरे मन की गंगा और तेरे मन की जमुना का बोल राधा बोल संगम होगा की नहीं” लेकिन आज इनं गीतों की तर्ज पर ये बाते भी पुरानी पड़ गई है। भारत कुमार बीत गये, राधा आज राखी बन गई, जिसका संवर बार-बार दोहराया जाता, दौलत की खातिर..कुल मिलाकर महोब्त का मुल्क दौलत के देश बन गया है।


कभी इस देश की पहचान ताज महल और अजंता की गुफओं से थी, आज बीएसई और एनएससी से उसका दर्पण देखा जाता है। सोनी महिंवाल अब प्यार में डूबते नहीं, डूबे तो भी कैसे , नदियों में कचरा, पानी से ज्यादा है, इतना की आप कचरे के पुल से पैदल ही दरिया पार कर जाये। फिर गांगा और जमुना के मिलन में मुहब्बत कैसे आएगी। हीर-रांझा की लव-स्टोरी के सट के लिये हमारी सरकार ने जंगल छोड़े ही नहीं, अगर कहीं कुछ जगंल बचे भी हैं तो वहां वो प्यार करने वाले नक्सली गोली या खाप-पंचायतो की लाठी की भेंट चढ़ जाते हैं।


खुदाई ने निकल कर खुद की बात ही करु तो ऐसा नहीं है, कि मेरे किसी से प्यार किया नहीं या किसी को मुझे प्यार हुआ नहीं..। एक तरफा से लेकर दोनो तरफ की मुहब्बत भी देखी, लेकिन किसी दोस्त ने सच कहा था कि, कुछ लोग रिश्ते बना नहीं पाते और कुछ निभा नहीं पाते.। गलती किसी थी, कहां हुई भूल इसके बारे की फिर कभी बतियाएंगे, इस दफा तो बात महोब्त और दौलत जंग की है भारत बदल रहा है, सोच से तेज और हम दौड़ रहे है मन की रफ्तार से। कल किसी दोस्त के साथ रात के खाने पर गया था। बेचारी चाहती नहीं पर घर पर शादी की बात चल रही है। ऐसा नहीं है कि उसे किसी से प्यार है पर लड़को को रिजेक्ट कर देती है। आखिर क्यों..? तो जवाब था कि उन किस्म के लड़कों से शादी करके छोटे सहर की सैर करनी होगी और मैडम को बड़े शहर की शौहरत की आदत है।


मैने उसे कहा कि कितना अच्छा होता है वो छोटा शहर, जहां आप पूरे परिवार के साथ रात का खाना खा सकते हो, अखबार पढ़ने का वक्त मिलता है और फुर्सत के कुछ पल..। ठीक उसी तर्ज पर जैसे गोरे भारत आकर झोपड़ियो की फोटा उतारते है और कसीदें पड़ है..। लेकिन मै तो ठहरा ठेक देसी, सो रात को खुद से पूछो कि क्या मै ऐसे छोटे शहर की सवारी करना चाहुगां। जो जवाब मिला नहीं.., मुझे तो पांच दिनों में हिमालय कि वादियां भी काटने लगती है। दिल्ली के शोर की आदत तो पढ़ गई। तेज रफ्तार जिंदगी, मां की बातें कम और एफएम की बक्वास ज्यादा सुनने की..। पैसे नहीं पावर ही सही पर चाहिये तो बहुत कुछ..। शायद यहीं हाल आज के प्यार का है वो पहला, दूसरा या तीसरा नहीं होता, प्यार तो महज़ प्यार होता हैं। जो फेसबुक-आर्कुट या टि्वीट करने से शुरु होता है, वैब-कैम से परवान चढ़ता है फिर नेट की नौटंकी की तरह जल्दी ही उसका सरवर-डाउन हो जाता है। फिर नया कनेंक्शन लो और लगे रहो इंडिया...।।


फाइव-डे, ODI और 20-20 खेल की पींग पर प्यार भी बदल रहा है, कभी शादी सात जनम का संबध थी, फिर Life partner की बाते होने लगी, उसके बाद Living कल्चर का दौर आया और अब तो One Night stand का जमाना है। उसमें में कुछ सज्जन बोर हो जये और Copal shuffling trend भी आजमाया जाता सकता है। उसके लिये भी एक खेल है जो दिल्ली-मुंबई के पॉश ईलाको में खेल जा है। पार्टी के बाद लड़के अपनी गाड़ियों की चाबियां एक बाउल में डालते है, लड़ियां अपनी आखों में पट्टी बांधती है। फिर जिसके हाथ जिसकी चाबी लगी, वहीं रात का साथी। कुल मिलताकर अब जीवन रफ्ता-रफ्ता नहीं रफ्तरा से जलता है..।


कुछ संस्कृति के ठेकेदार इसे पश्चिम की बुराई बताते है। उन्हे फ्रेंडशिप डे और वेलनटाइन डे तो नज़र आता है पर अंजता की गुफाये नहीं दिखती, गुप्त काल की कामासुत्र भी नहीं, देवदासी और कालीबड़ी की वैश्याओ की माटी से बनी काली मां मुर्त भी नज़र नहीं आती। फिर कुछ हिन्दु बाबाओं की बाते भी याद आत है कि ये इस्लामी-नापाक हरकत है, जहां चाचा-मामा की लड़कियों से शादी हो जाती है। तो उन्हें भी रामयाण का वो पाठ पड़ना चाहिये जिसमें लक्षमण सीता भाभी को मां का रुप दर्शाते थे और आज के हिन्दु परिवारों में बड़े भाई मौत के बाद देवर का पल्ला उड़ा दिया जाता है। फिर उसी भाभी मां से उसके देवर के बच्चे पैदा होते है।


Copal shuffling और कथित संस्कृति में समानता क्या है ? तो जवाब मिलेगा पूंजी या दौलत। पहले कैस में अमीर युवा लोग दौलत और दारु के नशे में सोये हैं और दूसरे में हमारे सांस्कृतिक ठेकेदार स्त्री को परिवार की सम्पति मानकर खोये हैं। सरल अल्फाजों में औरत घर का माल है, जो घर पर ही रहना चाहिये, चाहे बड़े बेटे का पल्लू बांधकर या छोटे का सहांग बनकर। कुछ यहीं हाल है समाज के प्यार का भी है, जहां यूपी और बिहार में ठाकुर और भूमिहार, वहीं राजस्थान और हरियाणा में राजपूत और जाट पिछड़ो को अपना पानी नहीं देते तो प्यार की क्या बात करें। समाज से निकल कल ठेठ भारतीय शादी की बात करें तो प्राय पति, पत्नि की चाहत को ताक पर रखकर सेक्स करते है। फिर चाहे कैसी भी हालत और कोई भी दिन हो और बेचारी स्त्री अपने इस ताथाकथित रेप की शिकायत ना कानून से कर सकती है या समाज से..। आखिर समाज की जगह सोशल-साइट लेने लगी है। वैब-कैम पर बच्चे पैदा नहीं हो सकते वरना अल्ला जाने राम..।


कहते है जब बुद्धी से जवाब ना मिले तो बच्पन में लौट चलो, आखिर बच्चे मन के सच्चे..। मै भी मुनसीपार्टी के स्कूल में कच्ची पहली कक्षा में बैठक देखता हु। बच्चे पहाड़े दोहरा रहा है। “दो एकम दो, दो दुनी चार “ इससे एक बात का ख्याल आया कि, इतिहास भी तो खुद को दोहता है। जब दौलत की भूख से पेट में दर्द होने लगेगा है तो प्यार की प्यास जागे जायेगी।


भारत दुनियां की सबसे बड़ी आर्थिक शाक्तियों में एक है, जल्दी ही सोने की चड़िया फिर से बन जाएगा। तब जाकर सेक्स और सेंसेक्स से दूर कहीं सवेरा होगा। मुहब्बत रगं लाएगी। मां की ममता और जीवन साथी के प्यार के मोल को हम लोग दौलत से नहीं तोलेंगें। तब सोनो तो बहुत होगा पर सच्चा साथी नहीं..। आज भी इस सच्चाई की समझ हमे आने लगी है। एक घन्टे सैल और नेट बंद हो जाऐ तो एहसास होता की दुनियां में भीड़ है पर हम लोग कितने अकेले है..। खुदा से दुआ करुगा को महोब्त की महक से गांग-जमना छलक उठे और फिर से हम भारत के लोग प्यार की धरती का वहीं गाती गुनगुनाएं... है प्रीत यहां की रीत सदा।

7 टिप्‍पणियां:

dhananjay ने कहा…

sayad apka kahna thik hai

बेनामी ने कहा…

bahut dino baad itna aacha padha ha hamara desh badal gaya hai...
kabi man karata hai ki kaash pahele jaisa mahol hota to aacha lagta...
jaha sab ek saath they....

lakin ab to saath rahne ka matlab hi badal gaya hai
kher y blog bahut aach hai.... mujh bahut aach laga...

Unknown ने कहा…

Everything is Fair in love and war. People have their right to lead in life with their own perception. Some believe in walking hand in hand with the present scenario some want to set themselves as an example to the society.So it completely depends on the you how you perceive and go about it.

Muskaan-e-Hind ने कहा…

I like the thought....

Alka Sharma ने कहा…

काफी अच्छा लिखा है राहुल,बस कहीं कहीं यह समझने में वक़्त लग जाता है की तुम क्या कहना चाहते हो
समझ नहीं आता तुम इस नए कल्चर के साथ हो या खिलाफ?तुमने एक कमेन्ट भी किया है की राधा आज
राखी बन गयी है पर शायद यह लिखना भूल गए की वो राखी क्यों बन गई.जवाब शायद यही हो की आज कन्हैया,
कन्हैया नहीं रह गया.जो कुछ भी हो मेने इसे बहुत पसंद किया.

राहुल डबास ने कहा…

@ Arpits - मेने भी वहीं दिखा जो मैं देख रहा हु, अनुभव कर रह हु...।


@ Alka - दोस्त मै वाद को अभी पंसद नहीं करता चाहे नारीवाद हो या गांधीवाद क्योकि वाद आपकी आंखो का ऐसा चश्मा हातो है जिससे आप अपने प्रतिवाद को ठीक से समझ नहीं पाते, हम रगीनं दुनिया में रहते है मेरी दोस्त काली या सफेद धरा पर नहीं..। मै आधुनिक समाज के ना विरोद्धी हो या साथी..आखिर फेसबुक और ओर्कुट से देशो की सरहदें टूट जाती है। जो काम मंडल और कमंड नहीं कर पाये वो आज की लव-मैरिजे करती है - जाति चली जाती प्यार बचा रहता है। समाज और वाद हम से है, हम से हिन्दू और मुस्लिम है, हम से एकता है और हम से हिन्दोस्तान भी..।

बेनामी ने कहा…

aap itna achha bhi likhte hai pata nhi tha rahul ji