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गुरुवार, नवंबर 11

कनपुरा टू वाशिंगटन – ओबामा लाइव

मैं किसान हूं..पढ़ा-लिखा किसान, सोच के चश्मे से सच को देखना वाला इसलिये नाम बताना जरुरी नहीं समझता क्योंकि नाम में जाति की ज़जीर और मजहब के मायने तलाश लिये जाते है। जगह बताना लाज़मी है क्योंकि ये कहानी का मेरे गांव से वांशिगटंन तक का वास्ता है। मैं कनपुरा का निवासी हूं..नाम अंजान लगा..होता है आप दिल्ली-मुंबई वालो को वैगस और वैनिस के होटलों का नाम पता है देश के दर-दर का नहीं...लेकिन जैसे राहुल के जाने से कलावती का घर ससंद में फेमस हो गया ठीक वैसे ही आबोमा का मेरे गांव से नाता है। नाता रोटी या बेटी का नहीं, कमप्यूटर और इंटरनेट का...। वो महारे गांव प्रधाने 14*14 इंच के मॉनिटर से..क्या दिन था वो..।

मैं रोज़ सुबह अख़बार पढ़ता हूं..पता चला ओबामा साहब इस दफा 250 कंपनियों के मालिकान के साथ भारत आये हैं..निवेशक आये हैं, भला हो अमेरिका का..बीते चुनावों में महारानी मुख्यमंत्री मेरे गांव आईं थी..सड़क बनी थी, नलकूप में पानी था, बच्चों को भरपेट मिड-डे मील मिली थी...सो सोचा इस दफा जब आबोमा आन-लाइन आवेंगे तो महारी तक्दीर ही संवर जावेगी..। वो शिक्षा-कृषि और स्वास्थय की बात करेंगे..यानी बिहार में अब बच्चे जन्मजात अंधे पैदा नहीं होंगे, गांव की पाठशाला में छपला होगा, मेरे लड़की छठी में पढ़ने जावेगी क्योंकि स्कूल में बच्चियों के लिये अलग शौचालय बनेगा..। तभी जयपुर वाले भाई का फोन आया, बोला भाई बाहर देखो तुम्हारा गांव टीवी पर है। मैं निकला तो ईटीवी और सहारा के फटेहाल पत्रकारों की जगह..एनडीटीवी और टाइम्स नाउ के लोग खड़े हैं, कुछ फिरंगी चहरे भी हैं, और गोल-गोल छतरी वाली मोटर-गाड़ी भी...। लगा हो गई काया पलट, दिल्ली और जयपुर से अफसरान आये थे, सबको राम-राम किया और सोचा बराक जी के मै भी सवाल करुंगा आखिर हम दोनों में गांधीवाद का रिश्ता है, मैं शहर से पढ़कर आया हूं, टूटी-फूटी ही सहीं अंग्रेजी आती है।

ये क्या पंचायत घर में जाने के लिये कोई खास आईटी चाहिये मुझे रोका, भला हो चौधरी साहब का जो उनके टोकने पर अंदर जाने दिया। अंदर कुछ जवान बच्चे जोधपुर से मंगवाये हुऐ थे और हमारे गांव के पंच थे जिन्हें दिल्ली वाले साहब नये उजले कपड़े दे रहे थे...। चुप रहने का इंशाला हुआ, लगा ये कैसा दोनो सबसे बड़े लोकतंत्रों का मिलन जहां बोलने की आज़ादी तक नहीं, ओबामा आये अंग्रेजी में बोले मेरे पल्ले तो बस इतना पड़ा की आने वाले मौनसून से पहले हमें उसकी जानकारी की तकनीक मिल जाएगी..। मुझे रहा नहीं गया मेंने पाकिस्तान पर सवाल दागा पर ओबामा ने अनसुना कर दिया..भला ये कैसे गांधीवाद, ओबामा की कलाकारी किसी स्ट्रेसमेन जैसी लगी गाधींगिरी सिखाने की “ पाकिस्तान कि तरफ बुरा मत देखा, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो, चीन के लिये वो माओवदी दबंग है बुरा मत बोलो और भारत गांधीवादी गधा..” जिसे अरबो डालर के रक्षा सौदे करते है दुश्मनों का मारने के लिये लेकिन कृषि पर दिलचस्पी नहीं जिससे उसकी जनता जिंदा रह सके। करोड़ो के एयरक्राफ्ट चाहिये उड़ने के लिये पर बीमारियों से लड़ने के लिये अमेरिकी पेटेंट पर ढील नहीं...।

उसके दस मिनट बाद मीडिया के लोग चले गये, आधे घंटे में अफसरान लौट लिये, एक घंटा होते-होते पंचायत घर पर लगा नया-नवेला वॉल-पेपर उखड़ गया अब वो शाम तक सरपंच के घर की शोभा बढ़ाएगा..फिर मुझसे रहा नहीं गया और घर को लौट लिया..। बालक बताते है कि उस कम्पयूटर पर जिस पर एसएसपी के बच्चे खेलते है, मानों ठेठ देसी शादी की रसमें पूरी हो गई आबोमा की बारात बीत गई और नेट के साथ-साथ रोटी-बेटी का रिश्ता भी टूट लिया। रात में फिर से जयपुर वाले उसी भाई का फोन आया, बोल्यो मैने तुम्हे टीवी पर देखा था, खंडूवा मैला लग रहा था..मै बोला यहां तो लोग या तंत्र क्या सबमें मैल है..उसका बेटा बंबई के ताज़-होटल में काम करता है। वहीं टेलीफोन पर बता रहा था बोला चाचाजी ओबामा ने 2 मिनट का मौत 26/11 वालो के लिये रखा था..ऐसे 257 मौन पहले ही रखे जा चुके है..जब भी होटल में जब भी कोई कोई बड़ा जलसा होता है तो जन-गण-मन की तरह रतन टाटा के निर्देश पर बार-बार मौन होते है..माना हमे सिखाया जाता हो की मौन रहना ही बेहतर है और यहां मुर्दे को नौकरी मिलती है और जिंदा का ठोकरें..।

मेने बचपन में काबुलीवाले की कहानी पढ़ी थी..उस पर फिल्म भी देखी थी जयपुर जाकर शायद तब सोवियत हमले में लुटे-पिटे काबुल वाले अंकल भारत आकर करोबार करते थे आज भी एक सैल्समैन भारत यात्रा पर है..हमारे बिना वोट के पीएम बने मनमोहन उन्हें स्ट्रेसमैन की संज्ञा देते हैं आखिर हमारे सियासी रहनुमाओं को राष्ट्रनिर्माता अर्थ पता होगा भी या नहीं कोई नहीं जानता। और ओबामा सोचते होंगे कि काश मेरे मुल्क को ये आवाम मिल जाये और मुझे Statesman से salesman बनने की जरुरत नहीं होती...हावर्ड को आईआईटी से डर नहीं लगता, बैंगलुरु सिलिकॉनवेली को मात नहीं देता, गिरते वॉलस्ट्रीट की हालत उठते दलाल-स्ट्रीट जैसी होती और चप्पले-जूते चलने वाले संसद में खबर पढ़ने वाली मशीन (teleprounter) लगी होती।

आज कम से कम राहुल गांधी मध्यमवर्ग के लिवाज़ में नज़र आते है, प्रियंका डीयू की स्टूडेंट से कपड़े पहनती है। लालू-मुलायम-शरद परकटियों से खौफ खाते है, आरटीआई से मनमोहन के मंत्रिमंडल महल सा दिखता है, वरुण बंगाली बाला से शादी करते है, गडकरी साहब बीजेपी को पार्टी से एनजीओ बनाना चाहते है ये अंतर है। यहीं फर्क कॉमनवैल्थ के घोटाले के बावजूद खेल हिट हो जाते है, क्योंकि एक भारत वो भी है जो अपनी काबलियत के दम पर अमेरिका में नौकरी पाता है, यूरोप की अर्थव्यस्था को चलाता है, जिसकी दक्षता और डेड-लाइन से चीन भी चौंक जाता है। पर दोनों में अन्तर बहुत है जैसे मेरे कानपूरा के ओबामा और वांशिगटन के ओबामा। एक को तो गांधी के बंदर जैसे मेरे खेत नहीं दिखते, हथियार बेचने का ख्याल नज़र आता है, दवाई नहीं हवाई जहाज बेच जाता है और दूसरे वाशिंगटन के लिये 50 हज़ार रोजगार, अरबो डालर का निवेश ले आता है।

ओबामा एक ही है कनपुरा टू वांशिगंटन, वो सेलसमैन भी है और स्टेसमैन भी पर हमारे नेता उसे समझ नहीं पाते..जैसे आप AC में बैठकर BC करने वाले महिला आरक्षण का रागभैरवी गाते है पर आधी-आबादी की आजादी का नहीं, मुंबई को शांघाई बनाने की धुन है पर विदर्भ को हरियाणा और बुंदेलखंड को पंजाब नहीं..। बस मेरा कनपुरा एक दिन के लिये ही सही पिपली बनकर ओबामा लाइव हो गया.........?