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शुक्रवार, मई 21

अनजानी अंग्रेजी आगे अंधे बने - हम लोग

हिन्दी फिल्मी फसानें में अंग्रेजी को बड़ा funny दिखया गया है..अमिताभ से धर्मेन्द्र तक..। लेकिन कपिल देव ने इस कया को हमेशा के लिये पलट दिया। आप सोच रहे होंगे क्रिकेट, कपिल और इस कायापलट का क्या मेल है। जी हुजूर वास्ता बड़ा गहरा है। कपिल जी ने क्रिकेट वर्ल्डकप जीता..। और कपिल बन गये उस वक्त के सचिन..जिनके आगे ना जानें कितनी ऐड-कम्पनियां लैड-कार्पट बिछायें खड़ी थी..। टीवी उस वक्त रामायण-महाभारत और हमलोक तक सीमित था। तो कपिल जी उठाये पिंट के विज्ञापन के वास्त कदम..फिर लो हो गई काया पलट।


कपिल देव ने जिस किताब का ऐड किया..वो आज की देवी बनी बैठी हैं। उसका नाम था - “रेपिड एक्शन इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स”। फिर क्या है फिल्मी अफसाना..हकीकत का फसाना बन गया। जब हरियाणा के पूत कपिल अंग्रेजी बोल सकते हैं तो पूरा भारत क्यों नहीं। I can walk English, I can laugh English से I Can Speak English हो गया। बड़े-बूढ़े और बच्चे अंग्रेजी पढ़ने लगें। कप्यूटर अंकल आये तो हम लोग कॉल-सेन्टरों के बादशाह बन बैठे। नेट की नौंटंकी से नया इंडिया बना गिया। जहां अंग्रेजी हमारी पित्र भाषा है..।


60 के दशक में हिन्दी के नाम उत्तर-दक्षिण में बटने वाला भारत..इंडियां हो गया। नोकरी चाहिये हो या छोकरी अंग्रेजी से मिलेगी...। आलाद्दीन का चिराग भी इतना फेमस कहां हुआ होगा..जो काम इस भाषा ने कर डाला। ज्ञान अब, अंग्रेजी का मोहताज बन बैठा है..। अंग्रेजी नहीं आती तो आप अनपढ़-गवार है, फिर चाहे ससंकृत में शास्त्री की पदवी क्यो ना मिल गई हो..।


हम हिन्दौस्तानियों में एक खूबी हमेशा से रही है। हम रह चीज का भारतीयकरण कर देतें हो..चाहे तुका हो या बेतुका, शील हो या अशलील। भाषा को मां कर दर्जा दिया जाता है, लेकिन हमने तो अंग्रेजी की ही मां ही.....दीं। कुछ अल्फाज सीख लिये, जिनका बेमतलब-बेकार इस्तेमाल करने को हम लोग..Gen-Next Style कहते है। जैसे chill कर..। दुख में सुख में, घर पर - दफ्तर पर, ब्रेक-ओफ से लेकिन पैच-अप तक। अगर कोई पूछे कि मौसम कैसा है..तो हम लोग style कहेगें chill hae या cool hae। भले आदमी, 45डिग्री की गर्मी chill या cool कैसे हो सकती है। कोई अंग्रेज सुन ले तो शर्म से मर जाये कि कैसे उनकी भाषा की वाट लगा रखी हैं।


ऐसी ही एक शब्द का जादू हो जो किसी को भी बच्चा बना देती है – Baby। ये है हमारा stylish प्यार। ohh Baby, chill it. कहना रिवाज बन गया है। लड़का हो या लड़की या फिर किन्नर सब बेबी है और बच्चे भी- बूढ़े भी। बेचारी अंग्रेजी किस देश में फस गई। जो कल तक “ चलो छोड़ो यार” कहते थे वो आज “ fuck off Man” हो गया है। गाली का भी नया अंदाज है, ये अगड़े और देसी भाषा बोलनें वाले भारतीये पिछड़े। ना या हा, कहना कितना आसान लगता है। लेकिन हमने उसे भी nupe-yup बदल दिया। जीं, चैकिंग सीखनी है तो नई अंग्रेजी भी सीखो और वो भी Made in India.
ऐसा नहीं है कि ये हाल मेट्रो का है, गांव भी इसी रास्ते पर चल रहे है। ठंडा का मतलब दंत्तेवाड़ से देहरादून तक एक ही है। बोले तो ठंडाई या लस्सी नहीं, soft drink. । आखिर Its happens only in India. । गर्मी में छाछ की जगह कोक ने ले ली और ठंड में मलाईमार दूध को चाय कोफी ने रिप्लेस कर दिया..।


ऐसा नहीं है कि हम लोगो ने इस अंग्रेजी या विलायती भाषा से कुछ सरीखे का सीखा नहीं। पंजाब में जहां देसी-घी की नंदिया बहती थी, हमारी कम्पियों से डालडा का चस्का चटा दिया। यूपी-बिहार में भी नीम का मंज़न नहीं होता, कोल्गेट की जाती है। हरियाणा-राजस्थान के माटी के पूत भी विलायती साबुन से स्नान करते हैं।


इसपर एक औऱ अंग्रेजी शब्द याद आता है – paradigm-shift , मतलब उल्टा परिवर्तन। भारत बदल गया है, अब सपेरों के देस में भी सवेरा हो चला है। ठीक उसी तरह जैसे कभी पाली-प्राकृत की जगह संस्कृत राज भाषा रहीं, गरीबों की खड़ीबोली के स्तान पर बादशाहों की फारसी, और फिर अंग्रेजी। भाषा हो या शेली वहीं राज करती हैं,जिसे बालने वाले बहुसंख्यक और अमीर हो,यानी सरल भाषा में जिस बोली का बड़ा बाजार हो। हमारे पास तो सो करोड़ लोगों का बाजार हैं। शायद तभी, आज हौलीवूड की सबसे सफस फिल्म का नाम “अवतार” है। यूरोप में लोग forest को जंगल कहने लगें है। कोक हमारा पीना है तो बांसमती अमेरिका का खाना, पूरा अमेरिका बांसमती चावल का दीवाना है और दुनियां भरे के क्रिकेट खिलाड़ी आईपीएल के..। भाषा बदलती है बदली की तरब, बहती है धारा की तरह, लेकिन किसी भाषा या शेली को अंधा होकर cut-copy-past नहीं करना चाहियें। ताकी हम लोगों को याद रहें कि “भाषा ज्ञान का माध्यम है, मापक नहीं..।“

4 टिप्‍पणियां:

Goldy Mehra ने कहा…

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Unknown ने कहा…

hmm...sachmuch sochne wali baat hai...ye ek paripaty hai...jo bas chal padti hai...aur esmein bura hi kya hai...sab kuchh to badal raha hai...jaha langot tha waha frenchie ke kai avtar hain...bas samajh mein nahi aata ki log es pe itna chillate kyun hai...khud to es badalte mahaul ke sabse bade bhagidar hote hain...ab rahul bhai aap bhi aur hum bhi esi ka ek hissa hain..lekin log journlist ban jane ke baad usko ek mirror(aaeine) ki tarah kyun dikhana chahte hain...hamara khud ka yogdan bahut bada hai es badlav mein...aur yeh sirf yaha nahi hai...yeh global hai..so es badle parivesh ka maaza lijiye...kyun ki duniya ab wo nahi jaha ek desh se dusare desh mein pahuchana muskil kaam tha...ab duniya aapke mouse se sirf ek click door hai....bas dookh es baat ka hota hai ki log jab patrakar ban jate hain to es tarah ke baaton pe dhyan dete hain..jabki wo bhi hamesha es badlav ka jhanda uncha karte rahte hain..:)

बेनामी ने कहा…

good attempt rahul...keep it up...

jitender ने कहा…

good attempt rahul keep it up....