कहते है कि अगर आज सच्ची तस्वीर देखनी हो, तो आने वाले कल की खिड़की से उसे देखना। क्योंकि सोच के चश्मे झूठे हो सकते हैं, इतिहास के पन्ने नहीं सो सोच 2020 में ले चलें और टी-20 के तर्ज पर देखें कसाब का हिसाब।
राजधानी की सड़क खुदी है, पाइप-लाइन फटी है..आखिर कुछ सालों में इस शहर में ओलम्पिक गेम्स होने हैं। बच्चे बमुशिल स्कूल पहुंच पाते हैं। सोशल की क्लास चल रही है। क्लास में एसी है, ब्लैक-बोर्ड की जगह स्मार्ट स्क्रीन है, जहां चॉक से नहीं क्लिक से काम होता है। आज टीचर ने 2611 के पेज़ पर क्लिक किया हैं। लेकिन बच्चों को पसीना आ रहा है। जी ये बोर्ड का बुखार नहीं। वो तो इतिहास हो गया। अब सेमेस्टर सिस्टम है। बच्चों के लिये पिज्जा हट से मिड-डे मील भी आया है। पर पसीना बंद नहीं हो रहा। क्लास की सक्रीन पर कसाब का चेपटर चल रहा है।
क्या कसाब को देख पर बच्चे डर गये? या मुंबई हमले की तस्वीरों से बच्चे गश खा गये। जी नहीं, ये दवीं की क्लास है। बच्चों के सेलफोन में ना जाने कितनी ब्लू फिल्में है। घर के लेपटॉप में एक्शन-थ्रीलरों की फेहरिस्त हैं। रेप, मडर और टर्र देखकर तो उन्हें कुछ फील नहीं होता। यहां तक की ओलम्पिकं की तैयारियों में खस्ता हाल सड़कों में भी इन्हे एक्शन गेम्स नज़र आता है।
फिर भी पसीना-पसीना..तो हुजूर लेसन के बाद टीचर जी ने एक सवाल पूछा है। कि क्या हो गया कसाब का हिसाब? कसाब को फांसी लगें सालो हो गये, बच्चो ने फांसी पर सियासत और कानून की अठखेली भी अभी-अभी देखी है। अफजल और कसाब की फांसी में महज़ सात दिनों का फर्क था। फासीं का फांस पर दो सरकारें बदल गई। लेकिन बच्चे बेचैनं है। कि क्या कसाब का हिसाब हो गया?
मुंबई हमले का बाद भी मज़र नहीं बदला, हमले होते रहे, सियासत रेल चलती रही, रैलियों का रेला भी, पाक आज भी पड़ोसी है, पंसद हो या न हो। अंकल सैम ने ईराक के बाद, ईरान और उत्तर-कोरिया को बर्बाद कर दिया, कहते हैं कि, वो अंकल के घर में बंम फोड़ना चाहते थे। लेकिन हमे नसीहत देते हैं कि सब्र रखो, हमारे हुक्मरान आज भी उसे नेता मानतें और बंम-विस्फोटों को दिवाली के पटाखें। दिल्ली मेट्रो ने न्यूयार्क ट्यूब को कब का पछाड़ दिया। यूरोप बजारों का दाम, हमारे दलाल पथ से तय होता है, लेकिन कसाबो का आने की तारीख कराचीं तय करती हैं। और सब्र करते हैं।
बच्चों ने दस साल पहले के बुजुर्गों की बातें भी सुनी हैं। किलर मशीन है कसाब, 160 मौतो के बदले, 160 बार फांसी पर लटकाया जाए, हम लोग भी उसे फांसी देने की खातिर जल्लाद बनना चाहते थे। पर उसकी फासीं से कुछ नहीं बदला, ना पाक के नापाक इरादें, न अंकल सैम की सिफारिशें और न ही मालेगांव धमाके करने वालो का मन।
एक बच्चा बोला सरजी कराब का हिसाब हो गया। जैसी करनी वैसी भरनी ये, मैं नहीं कहता –गीता में लिखा, पापा बताते हैं। दूसरा बोला नहीं सर, मेरे पापा के दोस्त का नाम कसाब था, जामिया से मीडियां की पढ़ाई की, पर नौकरी नहीं लगी। क्योंकि उसका नाम कसाब है। बेचारे बेरोजगार ही रहे, नाम की चलते नौकरी नहीं मिली। अंकल कहते थे कि राष्ट्रवाद चंद कच्छा धारियों की जागीर नहीं है, उन्हे भी मुल्क से मोहब्बत है। नौकरी नहीं मिली तो, पूजा आंटी की शादी कहीं और हो गई। मेरे नटखट अंकल नक्सली बने बैठे।
सर बोले बच्चो टाइम नहीं बदला महज़ वक्त गुजरा हैं। दिल्ली आज भी खुदी है कोमनवेल्थ से ओलम्पिक तक, खून आज भी बहता है,1984,92 और 2006 तक के जख्म आज भी हरे है, कसाब जैसे जालिम आज भी जिदां है। लेकिन दुनियां को जीरो देने वाले हम लोग कसाब के हिसाब का जवाब नहीं तलाश पाया। यह बच्चो की नहीं भारत की बेबसी है। तो क्या एक फांसी से कसाब का हिसाब हो जाएगा। जरा सोचिये..।
राजधानी की सड़क खुदी है, पाइप-लाइन फटी है..आखिर कुछ सालों में इस शहर में ओलम्पिक गेम्स होने हैं। बच्चे बमुशिल स्कूल पहुंच पाते हैं। सोशल की क्लास चल रही है। क्लास में एसी है, ब्लैक-बोर्ड की जगह स्मार्ट स्क्रीन है, जहां चॉक से नहीं क्लिक से काम होता है। आज टीचर ने 2611 के पेज़ पर क्लिक किया हैं। लेकिन बच्चों को पसीना आ रहा है। जी ये बोर्ड का बुखार नहीं। वो तो इतिहास हो गया। अब सेमेस्टर सिस्टम है। बच्चों के लिये पिज्जा हट से मिड-डे मील भी आया है। पर पसीना बंद नहीं हो रहा। क्लास की सक्रीन पर कसाब का चेपटर चल रहा है।
क्या कसाब को देख पर बच्चे डर गये? या मुंबई हमले की तस्वीरों से बच्चे गश खा गये। जी नहीं, ये दवीं की क्लास है। बच्चों के सेलफोन में ना जाने कितनी ब्लू फिल्में है। घर के लेपटॉप में एक्शन-थ्रीलरों की फेहरिस्त हैं। रेप, मडर और टर्र देखकर तो उन्हें कुछ फील नहीं होता। यहां तक की ओलम्पिकं की तैयारियों में खस्ता हाल सड़कों में भी इन्हे एक्शन गेम्स नज़र आता है।
फिर भी पसीना-पसीना..तो हुजूर लेसन के बाद टीचर जी ने एक सवाल पूछा है। कि क्या हो गया कसाब का हिसाब? कसाब को फांसी लगें सालो हो गये, बच्चो ने फांसी पर सियासत और कानून की अठखेली भी अभी-अभी देखी है। अफजल और कसाब की फांसी में महज़ सात दिनों का फर्क था। फासीं का फांस पर दो सरकारें बदल गई। लेकिन बच्चे बेचैनं है। कि क्या कसाब का हिसाब हो गया?
मुंबई हमले का बाद भी मज़र नहीं बदला, हमले होते रहे, सियासत रेल चलती रही, रैलियों का रेला भी, पाक आज भी पड़ोसी है, पंसद हो या न हो। अंकल सैम ने ईराक के बाद, ईरान और उत्तर-कोरिया को बर्बाद कर दिया, कहते हैं कि, वो अंकल के घर में बंम फोड़ना चाहते थे। लेकिन हमे नसीहत देते हैं कि सब्र रखो, हमारे हुक्मरान आज भी उसे नेता मानतें और बंम-विस्फोटों को दिवाली के पटाखें। दिल्ली मेट्रो ने न्यूयार्क ट्यूब को कब का पछाड़ दिया। यूरोप बजारों का दाम, हमारे दलाल पथ से तय होता है, लेकिन कसाबो का आने की तारीख कराचीं तय करती हैं। और सब्र करते हैं।
बच्चों ने दस साल पहले के बुजुर्गों की बातें भी सुनी हैं। किलर मशीन है कसाब, 160 मौतो के बदले, 160 बार फांसी पर लटकाया जाए, हम लोग भी उसे फांसी देने की खातिर जल्लाद बनना चाहते थे। पर उसकी फासीं से कुछ नहीं बदला, ना पाक के नापाक इरादें, न अंकल सैम की सिफारिशें और न ही मालेगांव धमाके करने वालो का मन।
एक बच्चा बोला सरजी कराब का हिसाब हो गया। जैसी करनी वैसी भरनी ये, मैं नहीं कहता –गीता में लिखा, पापा बताते हैं। दूसरा बोला नहीं सर, मेरे पापा के दोस्त का नाम कसाब था, जामिया से मीडियां की पढ़ाई की, पर नौकरी नहीं लगी। क्योंकि उसका नाम कसाब है। बेचारे बेरोजगार ही रहे, नाम की चलते नौकरी नहीं मिली। अंकल कहते थे कि राष्ट्रवाद चंद कच्छा धारियों की जागीर नहीं है, उन्हे भी मुल्क से मोहब्बत है। नौकरी नहीं मिली तो, पूजा आंटी की शादी कहीं और हो गई। मेरे नटखट अंकल नक्सली बने बैठे।
सर बोले बच्चो टाइम नहीं बदला महज़ वक्त गुजरा हैं। दिल्ली आज भी खुदी है कोमनवेल्थ से ओलम्पिक तक, खून आज भी बहता है,1984,92 और 2006 तक के जख्म आज भी हरे है, कसाब जैसे जालिम आज भी जिदां है। लेकिन दुनियां को जीरो देने वाले हम लोग कसाब के हिसाब का जवाब नहीं तलाश पाया। यह बच्चो की नहीं भारत की बेबसी है। तो क्या एक फांसी से कसाब का हिसाब हो जाएगा। जरा सोचिये..।
6 टिप्पणियां:
aapne bahut accha likha hai ,kasab ka hisab accha laga
aapne bahut accha likha hai ,
ek kasab ke hisab se kuch nahe hone wala
yahan to har mood par ek naya kasab khada hai.
agar ek fansi se kasab ka hisaab nhi hoga...to apki kya ray hai use chod diya jana chahiye ya fir usko aisi maut deni chahiye jo hazaar mauton ke barabaar ho.........???
jahan tak lekh ka sawal hai...badiya likha hai dabas sahab...
jaanaab ispar mai pahle he tippadi kar chuka hai "Kasab gets death Sentense LOL. Repeating definition of Indian constitution : Jokes by the Indians, for the indians .". Aap bhi yahi hai hum bhi yahi hai dekhe kab finally saza ka execution hota hai :),kuch cheeeze bas kitabo or blogs tak he seemet hoti hai jaise ke ye padhne me aache, par haqeekat se koso door. Any way very well written keep it up.
likha accha hai keep it up par kash ye baat hamare system ko samajh ati . is system ka badalna hi sapne jaisa hai .
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