लेकिन आज के हालात जुदा है, संयुक्त मोर्चे की सरकार ने
साल-साल के पीएम देश को दिए, बीजेपी विपक्ष में थी और कांग्रेस महज़ तीसरे मोर्चे
की बैसाखी, मुलायम-लालू जैसे सीएम ना सिर्फ पीएम बनना चाहते थे बल्कि पीएम कौन
होगा यह भी वहीं तय करते थे..अटल सरकार में किश्तो में ही रही 6 साल तो चली लेकिन
गंटबंधन धर्म के चक्कर में विमान अपहरण या संसद, अक्क्षरधाम, विधानसभा पर आंतकी
हमले लचर गटबंधन की सरकार लाचार ही दिखाई दी, मनमोहन सिंह भी अमेरिका के साथ
परमाणु करार लैफ्ट के लाल झंडे की वज़ह से नहीं कर पा रहे है और अगरबारी मंत्रियों
के लिए हुई गंटबंधन की बात को राडिया के फोन से देश ने देखा ।
इतिहास के संकेत साफ है की जब तक इंद्रिरा, मोदी जैसी ताकवतर
छवि और सरकार के सुप्रीमों होगें हम आप्रेशन ब्लु स्टार के बाद भी भारत की एकता
बनीं रहेगी, जाट हरियाणा को जलाकर भी दिल्ली को दहला नहीं पाएगें, लेकिन अगर
भविष्य में फिर सत्ता की धुरी सीएम बन जाए तो..?
मैं खुद देखा उन राज्यों के नेताओं को जहां हर दूसरे घर में
फौजी होता और वहीं कहते की अगर राज्य नहीं बना तो चीन से सीमा का दिल्ली ही ख्याल
रखें, आध्रा का संकट, गौरखालैंड का आंदौलन किस अगर हिंसक हो सकता सबसे देखा है।
हमे भारत को राष्ट्रों का समुह नहीं बल्कि एक राष्ट्र के तौर पर विक्सित करना होगा
जो मौजूदा सांसदीये प्रणासी से मुंकिन होता दिखता नहीं..। भारत की विभित्ताओं को
ब्रिटेन, फ्रांस जैसे से नहीं तोलना चाहिए जहां एक धर्म, एक भाषा के लोग संसदीये
तरीके से सरकार बनाते है, ब्लकि अमेरिका जहां भाषा, विचार, वर्गों की बहुल से
राष्ट्रपति आधारिक व्यवस्था है।
कुछ जानकार कहेगें की हमारे संविधान निर्माताओं से सोच-समझकर
ही ससंदीये प्रणासी रखी होगी, लेकिन वो मेरे विरोधी बल्कि पिता तुल्य है, जैसे एक
बालक अपने पिता के कंधों पर खड़ा होकर अपनी दृष्ट्री को उनसे अधिक व्यापक कर लेता
है वैसे ही हम भी कर सकते है, नुतन विचार और पुरातर सोच का संगम । वैसे भी संविधान
निर्माताओं से तो आरक्षण की सीमा 10 वर्ष और 10 सालों में ही हिंदी को राष्ट्रभाषा
बनाने की सोची थी, पर होना सका यानी सोच तभी सार्थक है जब परिवर्तित हो रहें ।
अब ऐसा भी नहीं है की यह केवल विचार भर है, इस विचार के पीछे
कुछ पूर्व मंत्रियों की सहमति है जो 10जनपथ और 12तुगलक लेन के बेहदकरीबी मानें
जाते है और आधार भी है की अगर मोदी के मन में यह बात तो अगला चुनाव में देश की
जनता प्रधानमंत्री के नाम पर नहीं ब्लकि राष्ट्रपति के लिए वोट डाल सकती है, आखिर
देश बड़ा है, अनेकता से भरपूर भी जिसे एकता के सूत्र में बांधने के लिए ताकवर ऐसा
केंद्र चाहिए जो पाक जैसे मुल्कों को ना सिर्फ कड़ी ज़बान में जवाब दे ब्लकि
राष्ट्रहित में उसे चीरने की ताकत भी रहे । इसपर जनमत बनाने की जरुरत है क्योकि जब
भारत मां की जय पर राजनीति होनें लगे तो भारत को एक करने वाली प्रणाली की जरुरत पर
जोड़ देना लाज़मी है ।
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