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शुक्रवार, अप्रैल 8

अन्ना का अनशन, आंदोलन और हम लोग


जब भी कभी किसी पांच सितारा होटल के गलियारे में, एसी चैम्बर में बैठे अभिजात यानी ऐलीट लोगों की भ्रष्टाचार की बात होती है तो एक वाक़या हमेशा सुनाया जाता है। एक इंडियन सांसद अमेरिका गया, वहां की उच्च सदन सीनेट के सांसद से मिलने...अमेरिकी सांसद का घर बहुत अच्छा था..महल जैसा..रंगीन पर्दों के पीछे से उन्होनें भारतीय सांसद को पास का पुल दिखाया और बोले " आपको ये पुल नज़र आ रहा है..50 पर्सेंट"..यानी पुल के लिये कुल बजट का 50 फीसदी पुल के निर्माण में लगा और आधा उस अमेरिकी सांसद के घर को महल बनाने में..। कुछ महीनों के बाद वो अमेरिकी सांसद दिल्ली पहुचे, अपने इंडियन सांसद दोस्त के घर गये..फिर हमारे भारतीय सांसद ने उन्हें अपने सरकारी आवास से रोड पर लगा ट्रैफिक-जाम दिखाया और बोले " आपको वो फ्लाई ओवर दिख रहा है ?" जवाब मिला नहीं..क्योंकि वहां ट्रैफिक जाम तो था पर कोई फ्लाई ओवर नहीं..। हमारे सांसद साहब बोले.."100 पर्सेंट" और उनके हाथ में स्विसबैंक अकाउंट का आईडी था। यानी भारत में भ्रष्टाचार नहीं होता..100 फीसदी लूट होती है..फ्लाईलों में फंसाना बनता है और अफ़ग़ानों में काले धन की ख़बरे...।


आज इस लूट को रोकने के लिये अन्ना अनशन पर है... ख़बरियां चैनल कहते हैं कि यह अनशन नहीं आंदोलन है। फेसबुक पर मुहिम चलती है कि इस दफा का भारत रत्न सचिन को मिले या अन्ना को, ट्यूटर पर पोस्ट आता है कि अन्ना के आगे आईपीएल फेल हो गया, जीमेल-बज़ पर बुद्धिजीवी लोग अन्ना के अनशन स्थल को यानी जंतर-मंतर को भारत के तारीख़ चौक की संज्ञा देते है, एसएमएस और मेल आता है कि जब मनमोहन बिना चुनाव लड़े पीएम बन सकते है तो अन्ना बिना संसद पहुचे जन-लोकपाल बिल पास क्यो नहीं करवा सकते..। जंतर मंतर हज़ारों की भीड़ तो है, पर भीड़ से भीड़तंत्र बनता है लोकशाही नहीं..। कुछ जवा लोग इंडिया गेट की जगह जंतर-मतंर में तफ़री करते नज़र आते है..कुछ न्यूज़ चैनलों में दिखने की हज़रत लिये, कुछ पेरेंटस् अपने बच्चों की पीकनिक के बहाने यह दिखाने पहुंचते है कि एक सदी पहले गांधी की आंधी कुछ ऐसे ही चलती होगी..। क्या इससे 100फीसदी की लूट रुक पाएगी ?

अगर यहीं सच्ची तस्वीर है तो तथाकथित आज़ादी की दूसरी जंग की हालत भी पहले जैसी ही रहेगी..। 1947 की कीमत हमे आज याद नहीं क्योंकि आज़ादी के पेड़ के फल खाने के लिये..बहुत से राजा, कलमाडी, नीरा, हसन और रानी तक तैयार हैं। 1965 के नक्सवाड़ी के नेता चारु मजरुमदार , कानू सांयाल की सर्वहारा सोच की खेती कृष्णजी और गणपती जैसे नक्सली नेता आदिवासियों और पुलिस का खून मिलाकर खा रहे है। 1977 के लोकतंत्र की लड़ाई के सिपाई जेपी और लौहिया के लोग मुलायम, लालू, नीतिश, जॉर्ज ने सत्ता और चारा दोनो की मालाई खाई हैं..। 1992 और 2006 के आरक्षण और मंडल-मंडल की लड़ाई लड़ने वाले आज खुद रेल पर रेला निकालकर आरक्षण की भीख चाहते हैं। तो क्या अन्ना के अनशन और आन्दोलन की भीड़ से भ्रष्टाचार का भूत क्या भाग पाएगा ? और केजरीवाल, अग्नीवेश,रामदेव, किरनबेदी भविष्य के लालू-शरद और मुलायम यादव नहीं बनेगें ?

अभी दस साल भी नहीं बीते कि जब अन्ना हज़ारे ने 12 दिन सत्याग्रह करके सूचना का अधिकार पाया था। आज आरटीआई हथियार कम और दुकान ज्यादा बन गया हैं । इस बात कि क्या गारंटी है कि अगर मनमोहन सरकार लोकपाल बिल की मसौदा कमेटी में अन्ना का अध्यक्ष बना देगें, अगर नोटिफिकेश भी आ जाएगा तो भी इस बिल की हालत तलेंगाना राज्य की जैसी नहीं होगी, जिसके लिये आमरण अनशन के डर से एक कमेटी बनी, फिर उस कमेटी पर विचार करने के लिये एक ओर कमेटी लेकिन नतीज़ा सफ़र यानी शून्य, सियासी गोला और हीरो का ज़ीरो...।


हांलाकि हज़ारे के पास दो ऐसी बाते हो जो इस ज़ीरो के आगे लगकर सियासी रहनुओं के 19 पर 20 साबित हो सकती हैं। पहली भय और भूख और भ्रष्टाचार के नारो से उलट इस लूट को रोकने के लिये रोड़-मेप यानी जन-लोकपाल बिल का मसौदा है। और दूसरे हम लोग..। क्योंकि अन्ना का अनशन सीलिगं या एक रेंक-एक पेंशन के सामुहिक हितों के लिये नहीं है, उसका अनशन जेसिका लाल या प्रियदर्शीनी मट्टू जैसे वक्तिगत न्याय के लिये भी नहीं है। उसका अनशन हमारे लिये हैं। ताकि हमे सरकारी अस्पतालों में कफन तक के लिये रिश्वत नही देनी पड़े, ताकि काला-धन के कुबेर तिहाड़ जेल में नज़र आये, थानो में केस दर्ज हो, स्कूलों में मिले दाख़िला और भारत को सोने की चड़ियां वापस मिले..।


जंतर मंतर पर भीड़ है या जागरुक जनता इस पर सवाल उठाये जा सकते है लेकिन वो पैसे देकर भाड़े पर जुटाई नहीं गई, यह भीड़ भी सरकार के लिये वोट बैंक है..यह जताने के लिये काफी है कि हम नेता की रियाआ नहीं जो जाति और दारु के नाम पर बिकती रहे..हम भारत के लोग जनता है, प्रजा नहीं। चड़ियां के घोसले से फ्लेटो में रहकर, बुद्धू डिब्बे के कम्पियुटर कर काम करके और गूगल के चश्मे से संसार को देखकर भी..आज़ाद आवाम है। 10 जनपथ पर बैचेनी है, 7 आरसीआर में खलबली है, और मुम्बई के फिल्म वाले जहन में रंग दे बंससी या युवा जैसी एक और मूवी बनाने की मंशा..। 2जी में फसे मीडिया के गिग्ज दलाल भी जंतर-मंतर से लाइव करने पर मजबूर है, इस बिल से भीगी बिल्ली बनी बीजेपी भी समर्थन कर रही हैं और राजमाता सोनिया जी अन्ना के अपील..।


बड़ी बात यह नहीं है कि अन्ना का अनशन कामयाब होगा या नहीं, बड़ी बात यह भी नहीं की जंतर-मंतर की भीड़ जनमत का आंदोलन खड़ा कर पाएगी या नहीं..। बड़ी बात उस सांसद वाले वाक्य को फिर से पढ़ने की है..। कि उन सियासी लूटेरो के पास स्विजबैक अकाउंट है, गाड़ी और बगंला, जैवर और जांगीर भी..तो जनादेश का डर भी इन्हे ही लगना चाहिये..। अगर जनमत की आग फैलेगी को उस 80 करोड़ नागरिकों का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा जो दिन भर मेहनत से 20 रुपये ही कमाने पर इन लालफीताशाही नवाबों के महल जलकल ख़ाक ज़रूर हो जाएगें..। डर गरीबी की ज़ज़ीरो में फसे आवाम के नहीं, हमारे हुकमराने के दिन में है..लूट के बंद हो जाने के डर का नाम ही है जन-लोकपाल बिल..। इसलिये ज़रूरी है कि इस बार नवरात्रो का व्रत मिट्टी की मूर्ति के वास्त नहीं माटी के मानव के वास्ते जंतर-मंतर पर जाकर रखा जाए क्योंकि आज ये देश दवि या भगवान हवाले नहीं, हज़ारे और उनका साथ देने वाले हजारों लोगो के हवाले है..आखिर नेताओं के इस डर के आगे लोकपाल बिल है..।

4 टिप्‍पणियां:

Prity ने कहा…

अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति के लिए और उनके चंगुल से रिहाई के लिए आजादी के दीवानों ने एक लंबी लड़ाई लड़ी। 90 साल के संघर्षों और बलिदानों की बुनियाद पर देश गुलामी की जंजीरों से आजाद हुआ। और एक ऐसी व्‍यवस्था की परिकल्पना की गई जिससे कभी सोने की चिडि़या कहलाए जाने वाला भारत, अपनी खोई प्रतिष्ठा, अतीत और गौरव पुनः हासिल कर सके। आजादी के एक-डेढ दशक बाद ही लोकतंत्र की गाड़ी को जनता के नुमाइदों और हुकमरानों ने पटरी भटका दिया और आजादी के दीवानों का आजादी की खुली हवा में खुशहाली का सपना महज सपना बन कर ही रह गया।

लोग लोग ने कहा…

@ Preeti - यहां मेरा सवाल यहा इतिहास से नहीं भविष्य से जुड़ा था..100 घन्टों में अन्ना ने वो काम कल दिया है जो 42साल के लटका पड़ा था..लेकिन जन-लोकपाल बिल का अंजाम मनरेगा, RTI, RTE,RTF जैसा नहीं होगा..इसके लिये क्या करना चाहिये.

Prity ने कहा…

Rahul ji... देखिये एक बात तो तय है की केवल कानून भर बना देने से कुछ नही होने वाला ..आज पूरा सिस्टम करप्ट हो चूका है...लोक तन्त्र की थाली में कीड़े पड चुके है ..पर इसके लिए कोई बाहर वाला नही हम और आप ही जिम्मेदार है....आप के सवाल कि जन-लोकपाल बिल का अंजाम मनरेगा, RTI, RTE,RTF जैसा नहीं हो .इसके लिये क्या करना जाय ?....के जबाब में, मैं कह तो सकती हुं कि ऐसा न हो इसके लिए हमे भ्रस्टाचार खत्म करना होगा ...पर एक ऐसे देश में जहाँ भ्रस्टाचार संस्कृति बन चुकी हो .... बस के ड्राइवर से लेकर प्लेन का पायलट सब करप्ट हो चुके हो.....मेरा ये कहना केवल मेरी वेवकूफी होगी...

shuklapurnendu ने कहा…

अन्ना की मुहिम को आन्दोलन कहना गलत है.ज्यादातर लोगों को जनलोकपाल बिल की हवा भी नहीं होगी. अन्ना के बजाय कोई भी अनशन करे और मीडिया लगातार लाइव दिखाए. मुद्दा भ्रष्टाचार को हो तो जनाब भीड़ जुट ही जाती है.फिर भी लोगों के जज्बे को सलाम करताहूँ.