India is the nation of white man’s burden and a country of snake charmers. गोरो की इस कहावत को गूगल ने पलट कर रख दिया..आखिर गूगल के चश्मे से दुनिया को भारत का बाजार जो नज़र आता है। लेकिन शायद आज भी हम सपेरों और सांपो के देश में भी है। जो सांप (परिवार वाले) खुद अपने अंडों को (बच्चो) खा जाते हैं। सपेरे (खाप-पंचायत) उस सांपो को पालते है और सियासी सियाने इनका तमाशा बेतहाशा देखते हैं। दुनिया कहती है कि भारत बदल रहा है। ये मुहब्बत का मुल्क है, दौलत का देश भी..लेकिन महज समाजिक सांपों की केचुली उतार के देख लीजिये...नैतिकता का नंगा नाच समाने आ जाएगा..।
सांप भूख लगने पर अपने बच्चों का खा जाता है और जाति के ये ठेकेदार बुरा लगने पर..। केंचुली दोनों के पास है और जातिगत जहर भी। मैं हरियाणा चुनाव में जगह-जगह लाइव रिपोर्टिंग करता था। सड़को से समाज तक विकास देखा.. हरी खेती पर चलते महिंद्रा (ट्रैक्टर) और पक्की रोड पर चलती मर्सडीज गाड़ियां भी देखी..। हुड्डा जी के विज्ञापन पर पिज्जा का नाम आता था लेकिन प्यार के बोल नहीं..। अमेरिका के जो सियाने न्यूयार्क के टाइमस-स्वेर पर खड़े होकर चिल्लाते हैं, कि बाजार बांछे फैलाकर सबको समा लेता है...उन्हें जरा इस देश के अगड़ो की पिछड़ी सोच देखनी चाहिये..।
दिल्ली की पत्रकार को परिवार ये पढ़ाया तो सही लेकिन अगर वो सही-गलत का फैसला खुद करने लगे तो घरवाले खुद को खुदा मानकर उसे मारने का मन बना लेते है। हालांकि उनकी इस सोच के पीछे कई सिद्धांत भी मौजूद है। जैसे एक गोत्र में शादी करने से आने वाली नस्लों में खामियां आ जाती है। ठीक है वैज्ञानिक विचार है और ब्रिटेन के राज-परिवार का उदाहरण भी..। लेकिन कोई इन सियाने को समझाये कि जब ये गोत्र बने थे, तब जितनी आबादी दूर तलक के ईलाके की रही होगी, आज उससे ज्याद एक गोत्रों की है। हजारो और कहीं कहीं तो लोखों, फिर विज्ञान के ये ज्ञान उन्हें समझ भला क्यो नहीं आता..।
फिर ये सांप और सपेरे परम्पाओं की दुहाई देते हैं..। तो 4 वेद, 6 शास्त्र, 18 पुराण, 108 उपनिशदों में कहां लिखा है कि गोत्र विवाह करने वालो को मत्यु-दंड देना चाहिये। कम से कम वो प्यार करने वाले शादी तो करते है..। हमारे एक भगवान की तरह तो नहीं है जो रास रचायें किसी के साथ और रानी बनाये किसी और को..या दूसरे भगवान जैसे जिसे अपनी पत्नी से ज्यादा भरोसा अग्नि परीक्षा पर था और जिसने एक धोबी के करने पर गर्भवति स्त्री को जंगल का रास्ता दिखा दिया..। आपको मेरे बातें बुरी लग सकती है, बेहुदा भी..लेकिन मै तो लोक की बात करने वाला बेचारा हूं..क्या करुं, कभी परलोक देखा ही नहीं..। वो महान भगवान हो सकते हैं लेकिन बेहतर इंसान नहीं। बेहतर इंसान तो वो है जिन्होनें अपने प्यार को इस सांप और सपेरों के देश में शादी के मुकाम तक पहुंचाया..।
आम सांपो का फन दोहरा होता है..लेकिन इन आदम सांपो के फन के कई और-छोर हैं। जब इनकी दाल देश में गलती तो विदेशी माल को मानने में भी इन्हे मलाल नहीं..। Look West भी इनका एक फन है। आज-कल इस सामज के ठेकेदारो को David-Easton’s theory of right और UNO 1992 का चार्टर वो चार्टर जरा ज्यादा याद आने लगा है, जिसमें कहा है कि सरकार का फर्ज है कि वो उस क्षेत्र के लोगो की परमपराओं और मानव-अधिकारों की रक्षा करें। लेकिन एक और अंग्रेजी कहावत भी है, कि Less knowledge is more dangerous. वो 1992 के चार्टर को तो याद करते है, लेकिन सबसे पहले प्राकृतिक अधिकार (Natural Right) को नहीं..जो है “ जीने का अधिकार (Right to live) “ आप किसी की बलि नहीं ले सकते बड़ बोले भाईसाहब..। David-easton के साथ साथ Thomas hobbes, John locke और Rosso को भी पढ़े तो बेहतर होगा..।
लेकिन हम लोग अपने जवाब के लिये परदेश जाने की जरुरत नहीं हमारी मीडिया को चाहिये की खाप कि खबरों का बहिष्कार करें..ठीक वैसे ही जैसे प्रवीन तोगड़िया और राज ठाकरे सरीखे नेताओं के समाचारों के साथ किया जाता है। हमे चाहिये कि हमारी परमपारओं का शास्वत सच देखे कि,शिव के लिये के व्रत के पीछे सोमवार का वो मेला था..जिसमें कुंवारे लड़के-लड़कियां अपने साथी का चुनाव करती थे, ये ठेठ दिहाती सव्यंवर था। जिसे ये सांप सोचना नहीं चाहते। इतिहास देव-दासियों, नगर-वधुवो से पटा पड़ा है लेकिन ये पढ़ना नहीं चाहते। बसे इन्हें खाप और नेताओ की बीण सुनाई देती है..।
बलि और बलवान का इतिहास तो बरसो का रहा है। नारी की पूजा करो, पर उसे प्यार नहीं करने दो, वरण जाति के जहर से जान ले ली जाएगी। भला कोई समझाये कि लव-मैरिज में बराई क्या है। इससे जाति की जज़रीजें टूटती है, जो आपके मंडल और कमडल नहीं तोड़ पाये। दहेज का दर्द मिटता है, जिसे आपका काला कानून नहीं रोक पाया। जाति, रंग, क्षेत्र, भाषा और बोली एक होती है, जो काम आपके अनेकता में एकता के किताबी-बोल नहीं कर पाये। फिर बुराई भला है क्या , कोई नहीं जानता।
अरस्तु ने कभी कहा था कि, संपा के कान नहीं होते, उसे सुनाई नहीं देता और भगत सिंह ने कहा था, कि बहरो को सुनाने के लिये खमाका जरुरी है। विस्फोट विचारो का हो, कांति युवाओं की हो और इन्कलाब इष्क का..। आखिर एक गलत बात पर एक गलत बलि देखने से लड़-जाना बेहतर होगा..।
सांप भूख लगने पर अपने बच्चों का खा जाता है और जाति के ये ठेकेदार बुरा लगने पर..। केंचुली दोनों के पास है और जातिगत जहर भी। मैं हरियाणा चुनाव में जगह-जगह लाइव रिपोर्टिंग करता था। सड़को से समाज तक विकास देखा.. हरी खेती पर चलते महिंद्रा (ट्रैक्टर) और पक्की रोड पर चलती मर्सडीज गाड़ियां भी देखी..। हुड्डा जी के विज्ञापन पर पिज्जा का नाम आता था लेकिन प्यार के बोल नहीं..। अमेरिका के जो सियाने न्यूयार्क के टाइमस-स्वेर पर खड़े होकर चिल्लाते हैं, कि बाजार बांछे फैलाकर सबको समा लेता है...उन्हें जरा इस देश के अगड़ो की पिछड़ी सोच देखनी चाहिये..।
दिल्ली की पत्रकार को परिवार ये पढ़ाया तो सही लेकिन अगर वो सही-गलत का फैसला खुद करने लगे तो घरवाले खुद को खुदा मानकर उसे मारने का मन बना लेते है। हालांकि उनकी इस सोच के पीछे कई सिद्धांत भी मौजूद है। जैसे एक गोत्र में शादी करने से आने वाली नस्लों में खामियां आ जाती है। ठीक है वैज्ञानिक विचार है और ब्रिटेन के राज-परिवार का उदाहरण भी..। लेकिन कोई इन सियाने को समझाये कि जब ये गोत्र बने थे, तब जितनी आबादी दूर तलक के ईलाके की रही होगी, आज उससे ज्याद एक गोत्रों की है। हजारो और कहीं कहीं तो लोखों, फिर विज्ञान के ये ज्ञान उन्हें समझ भला क्यो नहीं आता..।
फिर ये सांप और सपेरे परम्पाओं की दुहाई देते हैं..। तो 4 वेद, 6 शास्त्र, 18 पुराण, 108 उपनिशदों में कहां लिखा है कि गोत्र विवाह करने वालो को मत्यु-दंड देना चाहिये। कम से कम वो प्यार करने वाले शादी तो करते है..। हमारे एक भगवान की तरह तो नहीं है जो रास रचायें किसी के साथ और रानी बनाये किसी और को..या दूसरे भगवान जैसे जिसे अपनी पत्नी से ज्यादा भरोसा अग्नि परीक्षा पर था और जिसने एक धोबी के करने पर गर्भवति स्त्री को जंगल का रास्ता दिखा दिया..। आपको मेरे बातें बुरी लग सकती है, बेहुदा भी..लेकिन मै तो लोक की बात करने वाला बेचारा हूं..क्या करुं, कभी परलोक देखा ही नहीं..। वो महान भगवान हो सकते हैं लेकिन बेहतर इंसान नहीं। बेहतर इंसान तो वो है जिन्होनें अपने प्यार को इस सांप और सपेरों के देश में शादी के मुकाम तक पहुंचाया..।
आम सांपो का फन दोहरा होता है..लेकिन इन आदम सांपो के फन के कई और-छोर हैं। जब इनकी दाल देश में गलती तो विदेशी माल को मानने में भी इन्हे मलाल नहीं..। Look West भी इनका एक फन है। आज-कल इस सामज के ठेकेदारो को David-Easton’s theory of right और UNO 1992 का चार्टर वो चार्टर जरा ज्यादा याद आने लगा है, जिसमें कहा है कि सरकार का फर्ज है कि वो उस क्षेत्र के लोगो की परमपराओं और मानव-अधिकारों की रक्षा करें। लेकिन एक और अंग्रेजी कहावत भी है, कि Less knowledge is more dangerous. वो 1992 के चार्टर को तो याद करते है, लेकिन सबसे पहले प्राकृतिक अधिकार (Natural Right) को नहीं..जो है “ जीने का अधिकार (Right to live) “ आप किसी की बलि नहीं ले सकते बड़ बोले भाईसाहब..। David-easton के साथ साथ Thomas hobbes, John locke और Rosso को भी पढ़े तो बेहतर होगा..।
लेकिन हम लोग अपने जवाब के लिये परदेश जाने की जरुरत नहीं हमारी मीडिया को चाहिये की खाप कि खबरों का बहिष्कार करें..ठीक वैसे ही जैसे प्रवीन तोगड़िया और राज ठाकरे सरीखे नेताओं के समाचारों के साथ किया जाता है। हमे चाहिये कि हमारी परमपारओं का शास्वत सच देखे कि,शिव के लिये के व्रत के पीछे सोमवार का वो मेला था..जिसमें कुंवारे लड़के-लड़कियां अपने साथी का चुनाव करती थे, ये ठेठ दिहाती सव्यंवर था। जिसे ये सांप सोचना नहीं चाहते। इतिहास देव-दासियों, नगर-वधुवो से पटा पड़ा है लेकिन ये पढ़ना नहीं चाहते। बसे इन्हें खाप और नेताओ की बीण सुनाई देती है..।
बलि और बलवान का इतिहास तो बरसो का रहा है। नारी की पूजा करो, पर उसे प्यार नहीं करने दो, वरण जाति के जहर से जान ले ली जाएगी। भला कोई समझाये कि लव-मैरिज में बराई क्या है। इससे जाति की जज़रीजें टूटती है, जो आपके मंडल और कमडल नहीं तोड़ पाये। दहेज का दर्द मिटता है, जिसे आपका काला कानून नहीं रोक पाया। जाति, रंग, क्षेत्र, भाषा और बोली एक होती है, जो काम आपके अनेकता में एकता के किताबी-बोल नहीं कर पाये। फिर बुराई भला है क्या , कोई नहीं जानता।
अरस्तु ने कभी कहा था कि, संपा के कान नहीं होते, उसे सुनाई नहीं देता और भगत सिंह ने कहा था, कि बहरो को सुनाने के लिये खमाका जरुरी है। विस्फोट विचारो का हो, कांति युवाओं की हो और इन्कलाब इष्क का..। आखिर एक गलत बात पर एक गलत बलि देखने से लड़-जाना बेहतर होगा..।